Язык скользил по чудесам и клитор терся по усам... классическое

(вольный перевод, ДАНИИЛ  ХАРМС Жене)



На стебле почки две налились
когда вы на меня ложились

бутон прижав  к  моим  губам...
две влажные трепещущие  губки
дюймовочкой раскрылись пополам
и нежные стекались струйки...

язык скользил по чудесам
и клитор терся по усам...
От удовольствия  стонали
и ртом упругий ствол сосали...


DANIEL  HARMS

An  die  Frau


Lange Zeit  schrieb  ich  fast  nicht
hing  vom  Stuhl  ab  träg   und   schlicht
Feder  ist  aus   Hand  geglitten
bis  die  Frau   kam  mir  geritten.
ich  schob  das  Papier   verachtend
küsst`  die  Gattin   weit  und  breit
(allerdings   die  Stille  achtend)
die  auf   mir  saß   nackedeit.
ich  küsst` sie  durchaus  beflissen
in  die  Brust  und  unter  Bauch
zwischen  Beine  wo  tat  fließen
Liebes-Saft -- dort   küsst`  ich  auch.
und  die  Frau  tat  sich  verdrossen
während  mich  mit   Scham  umarmt
und  den  Liebes-Saft  vergossen
ins  Gesicht  mir   viel  und  warm.
seufzend   unter  zarter  Dame
schluckte  ich  den  trägen  Saft
und  die  Frau  sie  seufzt   zusammen
sucht  zu   trocknen   Leidenschaft.
doch  dann  drückt  sie  mir  zu  Lippen
ihre  Lippchen  bebend  an
und   die   Scham  trifft  sie  bis  Rippen
und  sie  flieht  ins  Sarafan.
zarte  Bächer  tun   benetzen
mir  die  Wangen!  dufte  Düfte
ihrer  Leidenschaft   verhetzen
dumpfe   zimmerliche  Lüfte.
Doch  genug!  Wo  ist  mein   Feder?
Wo  sind   Tinte  und  Papier?
Das  Aroma  fliegt  ins  Fenster,
Liebling  hat  nun   Angst  vor   mir.
Sie  springt  auf,   --  los!  ich  tu`  schreiben,
reihe  die  Buchstaben  `rein,
zieh`  die  Sinne  mit   den   Leinen,
flechte  Reime,  dichte  fein.


(3.  Januar  1930)


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